Saturday, May 26, 2012

तुमसे आखिरी विनती - डॉ नूतन गैरोला

 

            

देखो न …..अभी मुझमे साँसों का आना जाना चल रहा है……जिंदगी के जैसे अभी कुछ लम्हें बचे हुवे है ….. आस का पंछी अभी तक पिंजरे में ठहरा  है …. सुबह पर अब सांझ का पहरा है …. और सांझ की इस बेला पर याद आने लगीं  है ..वो धुंधली परछाइयाँ  ....जब हम संग संग रोये थे…. और इक दूजे के पौंछ आंसू  खिलखिला कर हँस दिए थे .. साथ था न तुम्हारा मेरा, तो मलाल किस गम का … लेकिन विधाता को क्या मंजूर था ..छोड़ दी थी डोर उसने मेरी जिंदगी की पतंग की .. तुमसे दूर किसी और आसमां पर जा कर फडफडाती रही जिंदगी .. हवाओं में लहराती रही … बहती रही उधर जिधर बहाती रही …क्षितिज पर चटख रंगों वाली सुनहली  अकेली पतंग ..  कई हाथों को लुभाती रही … इतर हाथों से फिसलती रही ....डगमगाती रही, पर बढती रही .... तब तक जब तक वह हवाओं की  प्रचंडता से टूट कर छिन्न भिन्न न हो जाये या कि बारिश में गल कर टपक ना जाये .. देखो न सिन्दूरी सांझ भी ढलने को है और रौशनी भी गुम होने को है बस तुमसे आखिरी बात … 

                             Harbour_Sunset_wallpaper


शाम ढल रही है

पिंजरे में पंछी व्याकुल है
लौ भभक के जल रही है|
सागर पर लहरे ढह रही है
और
रात दस्तक दे रही है
पर अभी
उजाले का धुंधलका बाकी है
तेरे इंतजारी में रौशनी ठहरी सी है
तुझे रौशनी की किरणें छू जाएँ
तू आ जा |

….…डॉ नूतन गैरोला 

Sunday, May 13, 2012

ऐसा भी पहाड




              मेरी माँ जैसे हिमालय
              जो कल भी था
              आज भी है
              और सदा रहेगा |
              और मैं हिमालय की बेटी  ||…. नूतन     
  
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                                    जिंदगी में बेहद कडुवे घूंट के साथ जीना, बस एक चलती हुवी लाश बन कर अपनी ही जिंदगी को ढोना बस ऐसा ही अहसास रहा माँ के बिना .. जिस तरह माँ अचानक छोड़ कर चली गयी किसी के गले नहीं उतरा .. बहुत मजबूत इरादों वाली मेरी माँ ने अपने बचपन में बेहद कड़े संघर्षपूर्ण पहाड़ी जीवन को बहुत हिम्मत से निभाया | उनके पिता जी का स्वर्गवास जब वह शायद ढाई साल की थी तब हो गया था| माँ विलक्षण बुद्धि की बेहद प्रतिभाशाली थीं किन्तु पढ़ने का मौका नहीं मिला बड़े भाई की किताब से रात को पढ़ती थी| दिन में खेती और घास काटने पहाड़ की कठिन धार में जाती| ऊँचे ऊँचे पहाड और गदेरों (नालों) को पार करती| सूखे पेड़ों की लकड़ी एकत्र करती| तब घर में खाने की आग का इंतजाम होता| नानी की तबियत भी कुछ खराब रहने लगी थी| मामा जी भी पहाड के सूखे खेतों में अपनी जीवन उर्जा लगा रहे थे| नानी ने गाय पाली थी एक दो बैल खेती के लिए|  माँ घास काटते हुवे गाने गाती और सहेलियों के साथ बतियाती | माँ बच्चों में शैतान थी लेकिन कार्य के प्रति बेहद गंभीर रहती |
                                        एक बार जोशीमठ से ऊपर  बेहद ऊँचे और गाँव से बहुत बहुत दूर उस पहाड़ में गदेरों को पार करते हुवे माँ और उनकी सहेलियों की टोली गौन्ख के भीषण घनघोर जंगल में पहुचे | तब माँ की उम्र १२ साल की रही होगी | वहाँ लकड़ी काटते काटते रात होने लगी और तभी एक गिरे पेड़ के पीछे उडियार ( दीवार पर गहरी गुफा जैसी जगह ) पर एक आदमी की लाश दिखी थी| साथ की सहेलियां  बेहद डर गईं थी और और एक लड़की को चक्कर आये किन्तु माँ ने तभी भी  मन मजबूत कर सोचा था कि अगर हम डर गए तो आज रात घर नहीं पहुँच पायेंगें |माँ ने अपनी सहेलियों को होसला बढाया था और जल्दी जल्दी लकडियों को बाँध अपनी टोली को चलने को कहा …
                            रात घिर आई थी जंगल में उल्लू कीड़े और जानवरों की आवाज गूंजने लगी| पैर तेजी से रखो तो पहाड़ की ढलाऊ पगडण्डी से फिसल कर जाने कितनी गहराई में जा गिर जाने का डर | अपना और अपनी पीठ पर बंधी लकडियों का अपने भय से संतुलन बनाते हुवे ढलान पर तेजी से उतर रहे थे किन्तु अँधेरा बहुत ज्यादा था . रास्ते  में वहाँ पर गौन्ख गदेरा आ गया | और वहाँ पर भूतों के रोने की आवाजें गूंज रही थी सभी सहेलियां अब घर जाएँ तो जाएँ कैसे? कोई भी आगे बढ़ने को तैयार ना थी .. माँ ने कहा भूतवूत कुछ नहीं होता मैं आगे जाउंगी तुम मेरे पीछे आना | माँ आगे चल दी और सहेलियां उनसे चिपक कर उनके पीछे पीछे किन्तु गदेरा पार करते करते पीछे वाली लड़की रोने लगी कि हमें लग रहा है कि पीछे से भूत आ जाएगा तब माँ ने उन्हें पीछे से जा कर सहारा दिया | छोटी तो वो भी थी पर बेहद निडर | रात हो गयी थी गाँव वाले डर  गए कि बच्चे कहाँ गए लेकिन बच्चे डर कर ना तो कोई आगे रहना चाहता था ना कोई पीछे| डर कर सबकी घिग्घी बंधी हुवी थी|  माँ ने सबको साथ साथ आने के लिए कहा और खुद उन रास्तों पर जहां हर वक़्त बाघ और भालू का डर रहता था, अकेले दौड़ते हुवे पहाड़ी ढलान  पर करीब  दो ढाई किलोमीटर नीचे मारवाड़ी के पास सिंगधार अपने गाँव पहुची और सबको बताया कि वे सब कहाँ है फिर गाँव वाले मसाल ले कर माँ की उन सहेलियों को लेने चल पड़े जिसकी अगवानी फिर माँ ने बेहद थक जाने के बाद भी की …उनकी बहादूरी और निडरता के आगे सबने सर झुकाया | मैंने भी बचपन से यही पाया कि माँ अपनी जान की परवाह किये बिना सदा अन्याय के खिलाफ आगे आती ..जहां सड़क पर कुछ लोंग किसी लड़के को जानलेवा ढंग से पीट रहे होते ..वहाँ माँ कुछ ना सही अपने हाथ का छाता लिए उसकी रक्षा के लिए आगे आ जाती कि किसी का बेटा आहत हो गया तो| वो बुजदिली से तमाशा देखने वालों को आगे बढने के लिए कहती |…..

                      उनका व्याह चौदह वर्ष की उम्र में हो गया और वह एक पहाड़ी गाँव से दुसरे पहाड़ी गाँव में आ गयी | माँ का नाम रामेश्वरी होने के बावजूद उनको  घर मायके  में प्यार से रामी कहते थे | बाद में सरकारी कागजों में उनका नाम रमा लिखा गया और इसी नाम से उन्हें जाना गया |

………….आगे क्रमश


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