Wednesday, February 29, 2012

निगेटिव प्रोग्रामिंग ( एक कहानी ) डॉ नूतन गैरोला




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निगेटिव प्रोग्रामिंग

जहाँ कभी प्रभु भक्ति में डूबे भजन, शास्त्रीय  संगीत की लय पर भक्तिरस भरते, सितार की झंकार के साथ, घर की शोभा नीरा की मृदुल आवाज बरबस भजन की ओर सबका ध्यान आकर्षित करती, वहीँ आज नीरा की चीत्कार गूंज रही थी और बीच बीच में उसके नाजुक बदन पर चोट करते चिमटे की टंकार| इस भरे पूरे घर में कोई भी तो नहीं था जो नीरा की आवाज पर पसीज कर उसका बचाव करता| वह घर जिसे नीरा ने अपने खून और प्यार से सींचा था, यह वही घर था| जबसे दुल्हन बन कर घर में आई घर के हर सदस्य की तनमन से सेवा की| भोर के सूरज के उगने से पहले उठती और घर के बच्चों, ननद, देवर देवरानी, सास ससूर और बूढी दादी हर किसी का मान रखती और उनकी यथाअम्भव सेवा करती| घर में गोशाला का काम भी शादी के कुछ ही दिनों बाद संभाल लिया था| वह गाय जो किसी को नजदीक फटकने नहीं देती थी, अब नीरा ही उसका दूध भी दुहती और जो थोडा समय बचता उस समय वह प्रभु भक्ति और संगीत आराधना में बिताती|

गाँव में सभी कहते कि नीरा जैसी हीरा बहु तो लाखों में किसी एक किस्मत वाले को ही मिल सकती है| रामगोपाल ने जरूर पिछले जन्म में बहुत पुण्यकर्म किये होंगे जो उसके घर ऐसी हीरा बहु आई है| वे फूलमती से कहते कि तेरी बहु तो फालतू बात ही नहीं करती, क्या तेरे साथ अच्छे से रहती| फूलमती भी मुस्कुरा जाती| सच ही तो है - नीरा बेटी जैसी ही थी, फूलमती का हर दुःख दर्द समझती है| जबसे नीरा आई थी फूलमती को आराम ही आराम मिल गया था| गाँव की के घरों में नीरा एक उदहारण बन गयी थी जो उच्चशिक्षा प्राप्त हो कर भी बहुत उदार सहनशील और मृदुभाषी थी| साथ ही वह घर गाँव और खेतों का काम भी जानती और तन मन प्रसन्नचित्त हो हर काम करती थी| उसकी इतनी तारीफ़ अपने घर में होते हुए देख गाँव की कुछ महिलाओं को उस से ईर्ष्या होने लगी थी और नीरा जिन्हें जानती भी न थी ऐसी कुछ अनजानी औरतों के लिए भी वह आँख की किरकिरी हो गयी थी|

किन्तु पिछले कुछ महीनो से घर पर विपदा के साये मंडराने लगे थे| घर के द्वार पर हर शनिवार को सुबह सुबह राख, काली दाल, काला कपड़ा, कटे बाल, साथ में चावल और रोली कोई फैला जाता| ऐसे में घर के बच्चों को और बड़ों को समझाया जाता कि इसको लांघा न जाए नहीं तो कुछ अहित हो सकता है| सब दूर दूर खड़े देखते और नीरा राख को बुहारती उस जगह की सफाई करती| अभी चार महीने पहले ही बच्चों को दरवाजे की झीरी पर एक कागज़ की पुडिया मिली थी जिसमे रोली थी और पांच लॉन्ग के दाने थे जो हल्दी और रोली से रंगे थे और उन पर पूजा का नाला बंधा था, पांच चावल के दाने थे, और पांच काली दाल के दाने थे| सब को जैसे सांप सूंघ गया पुड़िया को छूने से सब डर रहे थे| तब नीरा ने ही उस पुड़िया को बच्चे के पास से ले कर आग के हवाले किया था| नीरा पढ़ी लिखी थी ऐसी बातों पर ज्यादा विश्वास नहीं करती थी और घर में समझाती भी थी कि यह अंधविश्वास है इसे मत मानो| कला जादू, टोना टोटका कुछ नहीं होता लेकिन घर वाले तो इन सब घटनाओं से डर चुके थे|

इसके बाद तो घर में आये दिन कभी दूध गिरता दिखता, और घर का बरसों पुराना शीशा भी तो तेज हवा से पहली बार फूटा| बूढी दादी भी ज्यादा बीमार रहने लगी| कुछ दिनों बाद बीमार बूढी दादी चल बसीं सब ने कहा कि यह टोना टोटका था जिसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गयी है | गाँव का ओझा भी दो चार बार दादी को भस्म का टीका लगाने आया था| उसका कहना था कि घर में प्रेत इतने अंदर पैठ गया है कि दादी पर भुभूत का असर नहीं हो रहा है| वह घर को प्रेत से मुक्ति दिलवाने के लिए घर में मुक्ति पूजा करवाना चाहता था| किन्तु नीरा ने इसका घोर विरोध किया कि दादी वृद्ध है उनको दवा और दुवा चाहिए, न कि प्रेत मुक्ति का आह्वाहन| इस पर ओझा नीरा से बहुत रुष्ट हुआ, कुछ दिनों बाद दादी भी चल बसीं| ओझा की बात पर घर वालों का विश्वास बढ़ गया| अब इधर फूलमती को तेज बुखार हो गया था, जो दवाई से टूट नहीं रहा था| गाँव के ओझा ने एक पुड़िया राख माथे पर लगाने के लिए दी, उसका कहना था कि यह बुरी आत्मा की नजर है जो उतर नहीं रही है और हुवा भी यही कि माथे पर पुड़िया का राख लगाने के बाद ही उसका बुखार उतरने लगा था| फिर भी नीरा फूलमती को नियम से दवाई खिला रही थी| पर फूलमती और रामगोपाल के मन में यह बात पैठ गयी कि जरूर कोई प्रेतात्मा है यहाँ| अब रात के साये भी सबको डराने लगे| डर से रामगोपाल ने एक रात को खिडकी से झाँका तो पाया कि नीरा के दरवाजे पर काली बिल्ली बैठी है, उसने फूलमती को बुलाया और दिखाया| फूलमती भी उस काली बिल्ली को देख कर डर गयी थी| फिर उन्होंने उस बिल्ली को कई बार नीरा के दरवाजे पर देखा| नीरा दयालू थी| वह बिल्ली को रोज थोडा दूध देती थी| फूलमती ने बिल्ली वाली बात गाँव में बतायी, तब किसी ने बताया कि काली बिल्ली तो चुड़ैल और प्रेत के इर्द गिर्द रहती है, उनकी निशानी है| आपके घर किसी ने बहुत बड़ा टोटका किया है शायद कोई चुड़ैल आपके घर के आस पास है| फूलमती की रूह काँप गयी| उसने नीरा को बताया तो वह जोर जोर से हँसने लगी| नीरा ने कहा कि सासू माँ आप भी ये बातें लोगो से क्यों करती है, ऐसा कुछ भी नहीं होता| रामगोपाल जो वही खड़ा था बोला कि पानी सर से ऊपर चढ़ने लगा है बहु और तुम कहती हो ऐसा कुछ भी होता, किस बात का इन्तजार है तुम्हें| नीरा उनकी बात से आवाक रह गयी थी| चुपचाप वह वहाँ से हट गयी| फूलमती और रामगोपाल सलाह मशविरा करने लगे|

आज सुबह देवर को शहर जाना था| नीरा का पति वही शहर में नौकरी करता था| देवर जब दहलीज से बाहर निकल गया तो नीरा ने आवाज लगायी - अरे देवर जी! यह चिट्ठी उनके लिए लिखी है यह भी उन्हें दे देना, देवर वापस आया और जैसे ही चिट्ठी ले कर जाने को हुवा की नीरा को छींक आ गई| देवर के जाने के बाद फूलमती बोली - मुई यही था क्या वापस बुलाने और छींकने का वक़्त| नीरा बोली माँ जी! नाश्ता बनाने में समय लग गया और मैने चिट्ठी उसी समय जल्दी में लिखी थी और छींक वह अपने आप आ गयी, पर इस से कुछ नहीं होता| आप परेशान न होए| लेकिन सुबह नौ बजे ही खबर मिली कि देवर का पैर फिसल गया था गाडी से उतरते हुवे और उसके पैर पर चोट लगी है| वह शहर के किसी अस्पताल में भरती था बड़े भाईसाहब देख-भाल कर रहे है उसकी | नीरा की चिंता के मारे बुरा हाल था- हे भगवान यह क्या हुवा, देवर जी को ज्यादा कष्ट न हो, जल्दी ठीक हों, और वह रो रही थी| उसने कमरा बंद किया भगवान के आगे दीया जलाया और देवर के शीघ्र कुशल होने की दुवा मांगने लगी – हे प्रभु! उनकी पीड़ा हर लो| उसने तिलक लगाया तब तक सास दरवाजे पर जोर जोर से खटखटाने लगी| उसने दरवाजा खोला तो देखा, पड़ोस की औरतों के साथ सास खड़ी थी, कहने लगी कि हमने तुझे हीरा समझा था पर नहीं जाना तू चुड़ैल है, अब तू कमरे को बंद कर कौनसा टोटका कर रही है| और महिलायें भी जिन्हें नीरा एक आँख न सुहाती थी इस बात पर अपनी सहमति प्रकट कर रही थी| नीरा के काटो तो खून नहीं , वह स्तब्ध रह गयी| बोली यह आप कैसा लांछन लगा रही हैं माँ | मैं तो उनके जल्दी अच्छे होने की कामना कर रही हूँ.| एक महिला बोली – तुने बहुत कर दिया दिखावा अब यह नहीं चलेगा| तुने बगल में अब रमिया के घर भी जादू चलाना शुरू कर दिया है| गाँव के ओझा के पास गए थे हम| उसने बताया कि रोज रोज जो तुम्हारे द्वारे पर राख पड़ा रहता था तू ही उसको बिना ओझा को बुलाये, खुद बुहारती थी| प्रेतात्मा को तुने सीधे ललकारा |वह कागज़ की लॉन्ग वाली पुड़िया जो तूने जलाई थी, प्रेतात्मा उस से निकल कर तेरे शरीर में घुस गयी| अब तू तू नहीं है, सिर्फ प्रेतात्मा का घर हो गयी है| तूने दादी को खा लिया है, आज तो जवान बेटे को ही खा गयी थी, वह तो किसी तरह बच गया| तुझे चलना होगा हमारे साथ| तेरे शरीर में प्रेतात्मा का वास है उसे तेरे शरीर से बाहर निकलना होगा, इस से पहले की तू किसी और का बुरा करे| नहीं तो तुझे हम गाँव से बाहर निकाल देंगे|

नीरा चिल्लाई यह क्या कह रहे हो| औरतों ने उसका हाथ पकड़ लिया| रामगोपाल को कमरे से झांकता देख नीरा चिल्लाई – बाबा मुझे बचा लो| ये लोग क्या कह रहे है| रामगोपाल बोला, मैं कुछ नहीं कर सकता| सारे गाँव में यही हाम फ़ैली है कि तुझमे प्रेतात्मा घुस गयी है और मुझे भी ऐसा ही लगता है| तुम्हें तुरंत ओझा के पास जाना होगा| एक औरत चिल्लाई - अरे भैया आप किस से बात कर रहें है यह नीरा नहीं है उसके अंदर की प्रेतात्मा बोल रही है| नीरा ने अपने हाथ झटके और कमरे में अंदर से चिटकनी लगा दी| तब तक गाँव के और लोग भी आ गए| नीरा से दरवाजा खोलने के लिए कहा गया| दरवाजा जोर जोर से भड़भड़ाया| लेकिन नीरा ने दरवाजा नहीं खोला| गाँव के लोगो ने सोच समझ कर यह निश्चय किया कि ओझा को यहीं बुला लेते है जबरदस्ती में दरवाजा खुलवाने से प्रेतात्मा के कोप का भाजन किसी को भी बनना पड़ सकता है और कुछ लोग ओझा को लेने चले गए| इस बीच घर के बच्चों को भी समझा दिया गया कि इस समय नीरा तुम्हारी माँ या चाची नहीं| इस समय उसके अंदर प्रेतात्मा है और बिना ओझा के वह प्रेतात्मा उसके शरीर से नहीं निकल सकती| इस लिए ओझा आ कर तंत्र साधना से उसके शरीर से प्रेतात्मा को निकालेगा| बच्चे डर के मारे सिहर गए|

ओझा आ चुका था| काफी देर तक दरवाजा भडभड़ाया गया फिर नीरा को दरवाजा खोलना ही पडा| बस अब क्या था नीरा चुंगुल में थी ओझा ने तमाम तांत्रिक साधना के यंत्र भुभूत आदि फैलानी शुरू की| एक यज्ञ का कुंड बनाया गया और कई तंत्रों मन्त्रों के साथ शुरू हुआ नीरा का क्रंदन, वह रोती रही, चिल्लाती गिड़गिड़ाती कि मैं नीरा हूँ मुझ में कोई दोष नहीं छिपा है, मुझ में प्रेतात्मा नहीं, लेकिन ओझा उसका बाल पकड़ खींचता और उसके मुंह पर अक्षत जोरों के फेंकता बोलता निकल, जा तू इसके शरीर से बाहर| बेचारी नीरा, कोई उसको सुनने वाला ना था .. जो एक दो उसकी बात को समझ भी रहे थे उन्होंने इसका प्रतिरोध भी किया पर गाँव के ज्यादा लोगो के आगे उनकी एक न चली | वे यह सब कष्ट न देख सके और वहाँ से अपने घर बडबडाते चले गए |

ओझा ने कटोरी में तेल गरम करवाया और उबलता तेल नीरा की हथेली और पेट पर रखा और गरम चिमटे से नीरा की पिटाई शुरू कर दी| फूलमती भी थोडा डर गयी बोली ओझा देख हमारी बहु का नुक्सान न हो| ओझा चिल्लाया मेरी तंत्र साधना के बीच ना आ तू ए औरत ! यह चोट मैं प्रेतात्मा के शरीर पर मार रहा हूँ| तेरी बहु इसके निकलते ही सलामत होगी | घोर शारीरिक यंत्रणाएं दी गयी नीरा को | वह सह न सकी और बेहोश हो गयी| तब ओझा ने उसके मुंह पर पानी के छींटे फैंके तिस पर वह होश में नहीं आई तो ओझा बोला अब इसके शरीर से प्रेतात्मा निकल चुकी है| अब जो अगली आवाज इसके मुंह से निकलेगी वह नीरा की होगी| अब तुम नीरा का ख्याल रखो | सब गाँव वाले खुश हो गए| पैर धोए गए| केशर बादाम का दूध पिलाया गया| फलों और पकवान सब से ओझा की सेवा हुवी.. और नीरा के घर वाले ही ने नहीं बल्कि गाँव वालों ने उसे धन से सराबोर भी कर दिया| जमा सामान घर तक पहुंचवा दिया गया| और उधर दो घंटे में नीरा के करहाने की आवाजें आने लगी| सारा शरीर चोट के नीले लाल दागों से भरा था कही कहीं जले के निशान भी थे.. शरीर में भभूत और लाल सेंदूर बाल और कपडे अस्तव्यस्त ..चेहरे में घोर पीड़ा दिख रही थी और घर वालों के चेहरे में शांति|

उस दिन, शाम को जब लोग गाँव में खाना बनाते हैं उस वक़्त दूर गाँव के बाहर एक झोपड़ी से उठते धुवें से गरम मसालों की खुश्बू उड़ रही थी मीठे पकवानों की भीनी भीनी महक| और झोपड़ी के अंदर लालटेन की रौशनी में जमीन में आसन पर बैठे थे दो आदमी| उनके सामने बर्तन में भुना मुर्गा, सूखे मेवे, रम की बोतलें रखी थी| शहर से आने वाला बचपन का यार मछली कबाब भी साथ ले आया था और एक महिला चूल्हें पर खाना बना रही थी| आज बिल्ली के माथे छींका जो फूटा था|.. वो दोनों आदमी तेज़ी से सूखे मेवे और मुर्गे की टांगों का भक्षण कर रहे थे.. एक आदमी बोला तुम गाँव वाले कुछ कम रौशनी में रहने के आदी हो .. अब मैं शहरी ठहरा - थोडा रौशनी तेज कर यार| दूसरे आदमी ने लालटेन की रौशनी बड़ा दी और रौशनी में जिन आँखों में कुटिलता चमकी वह आखें ओझा की थी| उसका साथी बोला एक बात बता तुने आज पूरे गाँव को अपनी मुट्ठी में कर दिया| इतना कमा दिया एक ही बार और जो इज्जत मिली, वह अलग| कमाल कर दिया तुने.. कैसे किया इतना कुछ.. ओझा को अब तक नशे का सुरूर चढ़ने लगा था| नशें में ओझा थोड़ा बहकती हुवी आवाज में बोला ..वो नीरा मेरे काम में बहुत बड़ा रोड़ा थी .. गाँव में सबको पाठ पढ़ा रही थी कि अंधविश्वास क्या है विश्वास क्या है ..मेरे पेट पर तो लात ही मार दी थी उसने .. मैंने तो अब उगाह ही लिया वह सब कुछ उससे, उसको ही निशाना बनाया ..

दूसरा आदमी बोला तो तूने यह सब कैसे किया ... वह काला जादू और टोटका उनके घर तुने ही किया था क्या ... ओझा ने अट्टहास लगाई और बड़ी बेशर्मी से बोला ... कैसा जादू कैसा टोटका? तू क्या टोना टोटका और काले जादू पर विश्वास करता है .. अरे यार मोहन !! कहता हूँ मत कर, मत कर विश्वास इस टोटके पर नहीं तो तेरा हाल भी नीरा के घर जैसा हो जाएगा .. उसका दोस्त मोहन अवाक रह गया .. ये क्या कह रहा धनिया .. तो जो उनके घर के बाहर राख, सिन्दूर, हल्दी, काली दाल, काले कपडे थे उनका मतलब कुछ नहीं था? ओझा बहकता हुआ बोला -अरे वो मुई मेरे रास्ते को काट रही थी| बस थोडा दिमाग लगाया कैसे कांटे को निकला जाए और फूल भी पाया जाए तो बस उनके घर में रोज सुबह कुछ फ़ालतू की चीजे बिखेर देता .. वैसे मैने कुछ नहीं किया| ना कोई काला जादू ना टोटका न कोई प्रेतात्मा निकाली ..सिर्फ उनके दिमाग में खलबली मचा दी . .. और यह टोना टोटका होता भी कुछ नहीं .. जब आदमी डरता है इस से और इसके बारे में सोच सोच कर गलत राह में चलने लगता है ...मूर्ख अन्धविश्वासी तो फंसता जाता हैं .. बस यह उनके मन में बहम पैदा कर देता है ..और हम जैसो के वारे न्यारे हो जाते है .. बस मैं हवा देता गया उनके अंधविश्वास और खोखले विश्वास की आग को .. और इस झूठे जाल को टोना टोटका समझ कर अपने ही घर की बहु को पिटवा दिया और मुझे सम्मान भी मिला और धन भी... मोहन बोला तो यह टोना टोटका सिर्फ मानसिक रूप से भय को जन्म देता है जबकि कुछ भी नहीं होता.. मतलब तुमने उनके दिमाग की “निगेटिव प्रोग्रामिंग” की .. धनिया बोला ये नेगेटिव प्रोग्रामिंग क्या होती है ...अरे तुझे इन सब से क्या .. तू आम से मतलब रख पेड़ क्यूं गिनता है .. सामने मछली के गरमा गरम पकौड़े तेरी भाभी ने परोसे हैं अभी अभी, इसका मज़ा ले .. यह कह कर वह शराब का गिलास फिर भरने लगा|

और वहीँ गाँव में जिस घर से शाम के भोजन के बाद बच्चों और उनकी दादी के साथ गीत गाती नीरा की मीठी आवाज गूंजती थी| आज वहाँ खाना नहीं बना था और नीरा के करहाने की दर्द भरी आवाजें गूंज रही थी | ... नूतन

Sunday, February 26, 2012

अशेष लक्ष्यभेद - डॉ नूतन गैरोला


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प्रत्यंचा जब खींची थी तुमने
भेदने को लक्ष्य
खिंच गयी थी डोर दीर्घकाल तक कुछ ज्यादा ही कस |
टूट गयी वह डोर
सधा था जिस पर बाण
शेष हाथ में धनुष तीर
और अनछुवा रह गया लक्ष्य |..
नूतन ..७/१२/२०११ २१ :५५

Thursday, February 23, 2012

मन की खिड़की से - डॉ नूतन गैरोला



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मन की खिडकी से

जब भी

वह ताजगी से भरा चेहरा

मुझे पुकारता है......

ठिठक जाती हूँ मैं

और देखती हूँ पीछे मुङ कर

कितनी दूर हो चली हूँ मैं

सालों साल

एक लंबा अंतराल

चलती चली हूँ मैं ..

उम्र के पड़ाव

अनेक आये

कहीं रुकी नहीं मैं ..

और कितने ही पहाडों से

दरमियाँ बीच में

खंदकों से भरे

गहरे हैं फासले....

और इतनी दूरी देख

घबरा कर

उभर आती हैं पसीने की बूंदें

अनुभवों की परतों से बाहर

माथे पे झूलती सलवटों पर |

सोचती हूँ

क्या पहुँच पाउंगी उस तक वापस....

जहाँ मुझको गले लगाने

फिर से अपनाने

उतर आएगा

मन की खिडकी से

मेरा मस्त बेफिक्र बचपन|

लेकिन जानती हूँ मैं

वह अभी भी झूलता है

हिलोरे लेता है

मेरे मन के भीतर

और अक्सर मुझे दूर जाते हुवे देखा करता है

उदास मन से

मेरे मन की खिडकी से|

 

 

डॉ नूतन गैरोला … २३-०२-२०१२


Tuesday, February 21, 2012

तेरी गाथा तेरा नाम



  


बेहद बारीक अक्षरों से लिखी गयी थी वो गाथा
स्पष्ट कहीं  दिल के अंदर
या किसी किताब में अस्पष्ट किसी चोर पन्ने में
किसी दूसरे  नाम से
और जहाँ अक्षर दृष्टिगत थे वहाँ गाथा पर कितने ही लेप
खट्टे,  मीठे, नमकीन, कडुवे,
स्वाद बदल दिया गया|
वहाँ  गाथा मन के कमरे में नहीं
भीड़ में बाहर की ओर खुलती थी |
जहाँ दिल का नामोनिशान ना था,
लगता नहीं  कि  वहाँ  कभी किसी का  नाम था
उस जगह भीड़ है , वह रास्ता आम है |

डॉ नूतन गैरोला --- सितम्बर ? २०११ 

Tuesday, February 7, 2012

सजीला बसंत आ गया है - डॉ नूतन डिमरी गैरोला


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घोर तमस में यामिनी के, मौन क्यों रह गया अकेला,
लोचनों से पिघल स्वप्न क्यों अश्रु बन बहे जा रहे हैं?
सन्नाटों की दामिनी का नाद विरहणी ह्रदय में है,
राग भीने क्यूं विकल मन में तेरे याद आ रहे हैं ?
दूर अम्बर से उतर उर में तेरे पद्चाप आ रहे हैं|

पतझड़ से है व्यथित हिमआच्छादित सुप्त वसुधा
फाल्गुन की अंगडाई में, बसंत सुगन्धित आ रहा है
गुनगुने स्पर्श से धूप की, वसुधा का मन पिघला रहा है
छू कर रूपमती को जैसे चिरनिंद्रा से जगा रहा है|

स्वपनलोक की घाटियों से निकल पुष्प मुकलित  हो रहे हैं
दूर अम्बर से उतर उर में तेरे पद्चाप आ रहे हैं |

वादियों में प्रेमगीत अब फाग बन कर गूंजेंगे
जन-जन अब अबीर गुलाल संग चिरप्रेम रंग में रंगेंगे|
मधुरमिलन की आस में धरा खिल श्रृंगाररस से भर गयी है
पुष्पों से लकदक हरित बनैला, सुरचाप रंग से रंग गयी है |

फूलों के मधु को व्याकुल भवरें गुनगुन गुनगुन गा रहे हैं,
दूर अम्बर से उतर उर में तेरे पद्चाप आ रहे हैं |


मिट गया विरह, मिलन ह्रदय स्पन्दनों को बढ़ा रहा है ,
निस्तब्धता के मौन लय में, प्रेम मदिला सुर लगा रहा है|
शांत ठहरे लघु पलों में युगों का प्रेम गुन रहा है
श्वांसो पर झंकृत कोलाहल में मनपंछी पुलकित झूल रहा है|

दूर अम्बर से उतर उर में तेरे पद्चाप गा रहे हैं |
सृष्टि के सृजन का अब मधुमाधव आ गया है,
पतझड को मिटाने सजीला बसंत आ गया है ||….

 

डॉ नूतन गैरोला …५ जनवरी २०१२

बसंत के मौसम में सभी को शुभकामनाएं| कार्यव्यवस्ता की वजह से नेट पर आना नहीं हो पा रहा है| परन्तु प्रार्थना  है कि सभी के मन में बसंत सी ताजगी हो| उमंगो से भरपूर और हर्षित जीवन हो|

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