Thursday, December 15, 2011

न मिलेंगी खुशियाँ - नूतन



kuber

एक दिन कुबेर जी
साधू वेश में
मेरे घर आये|
कुछ दंभ में ऐंठे इतराये |
बोले - सुन
दुनियाँ जहां की दौलत है मुट्ठी में मेरी,
हर ख्वाहिश को मैं पूरी कर दूँगा तेरी|
मैं गर चाहूं तो एक नयी दुनियाँ बसा दूं,
तेरी टूटी झोपड़ी को भी महल बना दूं |
बोल बच्चा तुझे क्या चाहिए ?
मैंने तब उनके कान में
धीमे से बोला,
चंद शब्दों में
अपनी इच्छा का राज खोला |
कुबेर जी सकुचाए घबराये
उल्टे पैर दौड़ते नजर आये |
जानोगे मैंने उनसे क्या माँगा था?
मैंने मांगी थी सच्ची खुशियाँ
और गलती से मांग लिया था 

कि इस दुनियां में मिले एक अदद
स्वार्थहीन सच्चा प्यार
|     

   LONELY GIRL IN OIL


  ….. नूतन .. १५ – १२ – २०११  १६:४६ मं 


आज की दुनियां  में सच्चा प्यार मिलना असम्भव सा है... प्रेमी मन  में स्वार्थ कब बिन दस्तक दिए प्रवेश कर जाता है और प्रेम के रंग में घुल मिल जाता है कि प्रेम और स्वार्थ अलग अलग नहीं दिखाई देते हैं| माँ जिसका प्रेम  अपनी संतान के लिए   इस संसार में सबसे ऊँचा दर्जा रखता है, बिना शर्त प्रेम / Unconditional love होते हुवे भी कहीं ना कहीं बच्चों से अपेक्षा रखता है| ऐसे में निस्वार्थ प्रेम की सुलभता पर यही कहूँगी कि यह अति अति अति ही दुर्लभ है | 
सच्चा सुख तो आपसी प्रेम में निहित है  जिसका मोल धन से नहीं लगाया जा सकता है..धन से भौतिक वस्तुवों को ख़रीदा जा सकता है यह खुशियों का क्षणिक भ्रम तो पैदा कर सकता है पर सच्चा सुख नहीं दी सकता जो रिश्तों में प्रेम भाव में हैं ..भौतिक वस्तुवों की भांति प्रेम वह भी निस्वार्थ प्रेम कभी भी पैसों से नहीं ख़रीदा जा सकता चाहे कुबेर जी ही क्यूं ना खरीदना चाहें .. इसलिए इस कविता में कुबेर जी इस खरीद के लिए उल्टे पैर वापस जाते दिखाई दिए |  
बस एक ही प्रेम है जो निस्वार्थ होता है वो है ईश्वर का प्रेम अपने भक्त के प्रति .. और इस ओर राकेश जी ने ध्यान दिलाया उनका धन्यवाद | और हम "त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधू च सखा त्वमेव, की भावना को अंगीकार करें तो सारी खुशियाँ हमें सुलभ है|
सधन्यवाद - नूतन 

 

Sunday, December 4, 2011

तुम मेरे सच्चे साथी हो --



तुम
बिना कोई शिकायत के चुपचाप
मेरे पास बरसों से आ कर बैठ जाते हो ..
मेरे अन्तरंग समय में
मुझसे बहुत बतियाते हो
तुम मेरे सच्चे साथी हो |

भावनाओं के हर भंवर में
लहरों के उतार चढाव संग
मेरे सुख दुःख के साथ ही
तुम भी बहे  जाते हो|
तुम मेरे सच्चे साथी हो|

छोड़ गए जो तन्हा मुझको
दुःख भरे मेरे तन्हा पल में
मन की ताकत बन जाते हो तुम
तुम मेरे सच्चे साथी हो |

कागज़ की श्वेत चादर पर
सफर में संग उड़े जाते हो
आंशुवो को नीलिमा में ढाल
भावनाओं के महल बनाते हो ..
तुम मेरे सच्चे साथी हो|

जो बात किसी से कह ना पाऊं
वो तुम समझ ही जाते हो
मुझे छोड़  गया निर्मोही
बन उसका तुम विद्रोही
मेरा साथ निभा जाते हो
तुम मेरे सच्चे साथी हो  .. सेवा में – “ मेरी कलम “

४-१२-२०११   १५ :५१

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